माँ दुर्गा के नौ स्वरुप


 



या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, 
 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।



नवरात्री हिन्दू वर्ष के अनुसार 4 बार आते है जिनमे से 2 नवरात्रि गुप्त व् 2 नवरात्रि सामान्य में माने जाते है। भारतीय हिन्दू वर्ष चैत्र से प्रारंभ होता है और फाल्गुन में समाप्त होता है। 2 नवरात्री जो जाग्रत कहे जाते हैउनमे से एक भारतीय हिन्दू वर्ष के चैत्र माह में शुक्ल पक्ष में आते है और एक अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आते है। 2 अन्य गुप्त नवरात्री में से एक आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में एक माघ माह में आते है। इन सभी नवरात्री में 3 माह का समय अन्तराल होता है गुप्त नवरात्री में 6 माह का उसी प्रकार अन्य नवरात्री में 6 माह का तो इसे समय क्रम के अनुसार देखा जाये तो चैत्र -आषाढ़ -आश्विन -माघ इस प्रकार इसे आसानी से समझा जा सकता है.

 

1. शैलपुत्री 
2  ब्रह्मचारिणी 
3 चन्द्रघण्टा
4 कूष्माण्डा
5 स्कंदमाता 
6 कात्यायनी 
7 कालरात्रि
8 महागौरी 
9 सिद्धदात्री 

आज से शारदीय नवरात्रि का प्रारम्भ हो गया है जिन्हे आश्विन माह में आने के कारण आश्विन नवरात्रि भी कहा जाता हे इनका प्रारम्भ आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माना जाता है। इसदिन माता के प्रथम स्वरुप शैलपुत्री का पूजन किया जाता है --



1. शैलपुत्री 

ॐ देवी शैलपुत्र्ये नमः।।

वाञ्छितलाभाय चन्द्राधृकृतशेखराम। 

वृषारुढा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।



यह माँ का प्रथम स्वरूप है माँ पार्वती का एक अन्य नाम पर्वत राज हिमालय की पुत्री। शैल से यह तातपर्य शिला से हे जिसका अर्थ है प्रस्तर या पर्वत है। जो शिव को प्राप्त  करने के लिए कठोर तप करती है। माँ पार्वती का नवरात्रि का प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्रीके रूप में है जिनका वाहन वृषभ है उनके दहिने हाथ में त्रिशूल एवं बाएं हाथ में कमल पुष्प धारण किये हुए है। माँ का यह स्वरूप जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक है।



2  ब्रह्मचारिणी 

।दधाना करपद्माभ्याम,अक्षमालाकमण्डलू। 

देवी प्रसीदतु मयि ,ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

यह माँ दुर्गा का दूसरा रूप है जिसे ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता है इनके एक हाथ में जप माला व् एक हाथ में कमंडल धारण किया हुआ है।  माँ के इस रूप की उपासना से त्याग, वैराग्य,सदाचार व सयम की भावना को जगाने वाला माना जाता है। 


3 चन्द्रघण्टा

पिण्डजप्रवरारूढ़ा, चन्दकोपास्त्रकैर्युता। 

प्रसादं तनुते मह्यं ,चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

यह माता का तीसरा रूप  है जिसे चन्द्र घण्टा के नाम से जाना जाता है माता का यह रूप सिंह पर सवार है इनके दस हाथ माने गए है इनके हाथो में अस्त्र- शस्त्र के साथ ही जप माला और कमंडल भी धारण किया हुआ है ,इनके मस्तक पर चन्दमा घंटे के समान होने के कारन इन्हे चंद्रघंटा कहा जाता है। ये पापों से मुक्ति देती है और वीरता देने वाली,स्वर में माधुर्य का समावेश व् आकर्षण को बढ़ाने वाला है। 



4 कूष्माण्डा

सुरसंपूर्णकलशं ,रुधिराप्लुतमेव च। 

दधान हस्तपद्माभयं ,कुष्मांडा शुभदास्तु मे

माता  का चतुर्थ स्वरुप कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है इन्हे श्रष्टि को उत्पन करने वाली मने जाता है यही कारन है की ये अदि शक्ति  के रूप में पूजी जाती है ये सिंह पर सवार है इनकी आठ भुजाये है जिसमे चक्र ,गदा,धनुष,कमंडल,कलश,बाण कमल,जप माला धारण किये हुए है। इनकी उपासना से अष्ट सिद्धिया, नव निधियां की प्राप्ति होती है रोग से मुक्ति ,आयु ,यश में वृद्धि होती है।

 

5 स्कंदमाता 

सिंहासनगता नित्यं ,पद्माश्रितकरद्वया। 

शुभदास्तु सदा देवी ,स्कंदमाता यशस्विनी।।

यह माता का पंचम रूप स्कंदमाता है स्कन्द अर्थातः शिव व् पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक अन्य नाम। माता का यह रूप चार भुजाओ वाला है इसमें माता ने दाहिनी भुजा से कार्तिकेय को  पकड़ा है और एक अन्य भुजा से कमल पुष्प को थामे हुए है वहीं बहिनी ओर की एक  भुजा में  श्वेत कमल पुष्प व् अन्य भुजा वर मुद्रा में उठी हुए है।सिंह इनका वाहन है।  माता के इस रूप की उपासना परम सुख़ को देने वाली मोक्ष को देने वाली है इसके साथ ही भक्त की  इच्छाओ  पूरा करती है। 



6 कात्यायनी 

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा ,शार्दूलवरवाहना। 

कात्यायनी शुभं ददधात ,देवी दानवघातनी।।

यह माता का छठा रूप कात्यायनी है ऋषि कात्यायन के यह पुत्री रूप में जन्म लेने के करना इनका नाम कात्यायनी हुआ है ये चतुर भुजाये धारण किये हुए स्वर्ण के समान आभा वाली है दाहिनी भुजा में ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में व् निचे वाली भुजा वे मुद्रा में है जब की  ओर की ऊपर वाली भुजा में खड्ग (तलवार)व् निचे वाली भुजा में कमल पुष्प धारण किये हुए है सिंह इनका वाहन है। इनकी आराधन से पुरषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति होती है। 



7 कालरात्रि

एकवेणी जपकर्ण , पूरा नग्ना खरास्थिता। 

 लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी,तैलाभ्यक्तशरीरिणी। 

वामपदोल्लसल्लोह। लटकंटकभूषणा। 

वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा ,कालरात्रिभयंकरा।।

यह माता का सप्तम रूप कालरात्रि है इनका वर्ण अंधकार की भाती  काला है ये आसुरी शक्तियों का नाश करने वाली चार भुजाओ व् त्रि नेत्र रूपा है। ये एक हाथ मर खड्ग एक में अस्त्र एक हाथ अभी मुद्रा में एक हाथ वर मुद्रा में है ये गदर्भ (गधे ) है इनकी उपसना से तेज बढ़ता है समस्त पापो का नाश होता है। 



8 महागौरी 

श्वेते वृषे समारुढा ,श्वेतांबरधरा शुचिः। 

महागौरी शुभं दधात ,महादेवप्रमोददाद।।

यह माता का अष्टम रूप महागौरी है इनका वर्ण श्वेत है ये वृषभ पर सवार है इनके वस्त्र - आभूषण भी श्वेत है इनके चार हाथ है एक  हाथ में त्रिशूल व् एक हाथ अभय मुद्रा में है एक हाथ में डमरू व् एक हाथ वर मुद्रा में है इन्होने  पति रूप में पाने के लिए कई वर्षो तक कठोर तप किया था। इनकी उपासना सुखो में वृद्धि करने वाली व् शत्रु का नाश  करने वाली है। 



9 सिद्धदात्री

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यै: ,असुरेरमरैरपि। 

सेव्यमाना सदा भूयात ,सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

यह माता का नवम रूप सिद्धदात्री है इनके नाम से ही स्पष्ट है ये आठ सिद्धियों (अणिमा ,लंघिमा ,गरिमा ,महिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य ,ईशित्व ,वशित्व )को देने वाली है इनके चार हाथ है दाहिने ओर के हाथ में ऊपर की ओर गदा व् नीचे की ओर चक्र ,दायी ओर ऊपर के हाथ में शंख व् निचे के हाथ में कमल पुष्प धारण किये हुए है। इनकी उपासना से अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह कमल पर विराजमान है. 

 सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।