रावण 

       रावण को हम सभी ने एक बुरे व्यक्ति के रूप में ही पहचाना है किन्तु भारतीय संस्कृति के कुछ ग्रांथो में इनके व्यक्तित्व् की कुछ विशेषताएं बताई है।  वो शयद इसलिए हो की रावण राक्षसी का पुत्र होने के साथ ही ब्राह्मण ऋषि की भी संतान था तो जिस प्रकार हर संतान में माता - पिता दोनों के ही गुण समाहित होते है उसी प्रकार रावण में भीं माता और पिता दोनों के ही गुण समाहित थे। 

                            राम में जब रावण का वध किया तो राम ने मरणासन रावण के पास लक्ष्मण को उनका आशीर्वाद लेने के लिए कहा ले किन ये उल्लेख सिर्फ रामायण के कुछ संस्करणों में ही मिलता है जब की वाल्मीकि कृत रामायण जिसे हम सबसे अधिक महत्व पूर्ण मानते है उसमे ऐसा कुछ उल्लेख नहीं है उसमे तो रावण का वध युद्ध भूमि में बिना किसी विलम्ब के होना बताया गया है जब की रामायण के जो अन्य संस्करण है उसमे इस घटना का उल्लेख किया गया है। मेरे विचार में हमे अच्छा  ज्ञान जहाँ से भी मिले हमे उसे अधिग्रहण करना चाहिए और उसे आत्मासात करने का प्रयास करना चाहिए। 

                           अपने सारथी ,द्वारपाल ,रसोइये ओर भाई को कभी दुश्मन नहीं बनाना चाहिए क्योकि वे आपको कभी भी क्षति (नुकसान )पंहुचा सकते है। क्योकिं वे युम्हारे बारे में सुब कुछ जानते है यह उसी प्रकार है जैसे मेरा भाई विभीषण मेरे बारे में सब कुछ जनता था और मेने उसे राज्य से निष्काषित कर दिया। अगर वह तुम्हारे साथ न होता तो तुम लंका में कभी प्रवेश न कर पाते और में युद्ध को हार कर मृत्यु को प्राप्त न होता। 


                         कभी भी ये मत सोचो की तुम कभी जीवन में हार  नहीं सकते क्योकि जब तुम आज तक नहीं हरे तो आगे भी ऐसा नहीं होगा क्योकि व्यक्ति परिस्तिथियों के आगे विवश होता है आप की परिस्तिथिया कभी भी परिवर्तित हो सकती है व्यक्ति उसके वशीभूत होता है। जिस प्रकार जीवन रूपी युद्ध में व्यक्ति मृत्यु को प्राप्र्त होता है उसी प्रकार संसारिक युद्ध है जिसमे सर्वथा विजय होना आवश्यक नहीं होता है। जिस तरह मेने आकाश ,पाताल व् पृथ्वी के कुछ हिस्सों को जीता किन्तु अपने अहंकार के कारण आज में हर गया ओर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ। 

                        कभी किसी व्यक्ति को भी छोटा  या तुच्छ नहीं मन्ना चाहिए। मेने देवता ,राक्षस ,यक्ष ,गन्धर्व सभी को जीता किन्तु मेने ये हमेशा  यह माना की मनुष्य, रीछा ,वानरों की यह सेना मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकती यही अहंकार आज मेरी मृत्यु का कारण बना है। 


                      कभी भी सत्ता ,शक्ति ,धन का लोभ नहीं करना चाहिए अगर कभी ऐसा विचार आये भी तो उसे दूर कर देना चाहिए। इंसान को कभी इन तीनो का उपभोग करने का अवसर मिले भी तो उसे लोभ को हटाकर आपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। अपनी आवश्यकताओ ओर इच्छाओ को नियंत्रण में रखना चाहिए। 


                      कभी भी हम अपने भाग्य को नहीं बदल सकते जो जितना जिस समय होना है उसका हमे उपभोग करना ही पड़ेगा। अपने कर्म फलो का उपभोग है करना ही होगा। क्योकि हमरे कर्मफल ही हमारा भविष्य तय करते है इसलिए हमे हमेशा अच्छे कार्य को करने के प्रति ही अग्रसर होना चाहिए ओर अपने इष्ट का आराधन करते रहना चाहिए।


                      अच्छे कार्यो को करने के लिए तत्पर रहना चाहिए ओर बुरे कार्यो को टालते रहना चाहिए जिससे की अच्छे कार्यो का फल हमे शीघ्र मिलता रहे। 


                     अपने गुप्त रहस्यों को कभी भी किसी के भी सामने उजागर ना करे ताकि कोई भी उसका फायदा उठाये यदि मेने विभीषण को आपने रहस्य ना बताये होते तो आज वह उसका लाभ उठाकर वे रहस्य तुम न बताता और तुम उसका लाभ लेकर इस युद्ध में मुझे पराजित न कर पाते।