आश्रम व्यवस्था  

भारतीय संस्कृति में सम्पूर्ण जीवन काल की महत्ता को जानते हुए 4 भागो में बाटा है। भारतीय संस्कृति के अनुसार सम्पूर्ण जीवन की आयु 100 वर्षो की है। मानव का जीवन काल इन 100 के अंदर ही पूर्ण माना जाता है उसी के 4 भाग किये गए है। आयु का कोई निर्धारण नहीं किया जा सकता किन्तु वैदिक काल के समय ये मान्यता थी की एक व्यक्ति 100 वर्षो तक तो जीवित रहता ही है। लेकिन कई बार आयु उससे काम व् अधिक भी देखी गयी है। ये शायद उस समय की जीवन शैली पर निर्भर करता था। आज भी आयु व् हमारा जीवन हमारी जीवन शैली पर पूरी तरह से निर्भर करता है। 

प्राचीन भारतीय संस्कृति में आश्रम व्यवस्था के चार भाग है जो इस प्रकार है :-1 ब्रह्मचार्य 2. गृहस्थ 3. वानप्रस्थ 4. सन्यास। ये आश्रम इसी क्रम में रखे गए है। जाबालोपनिषद में सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में चार आश्रमों का उल्लेख मिलता है। 


1 . ब्रह्मचार्य आश्रम :-यह आश्रम चार आश्रमों में प्रथम माना जाता है मानव जीवन का आधार माना जाता है। अथर्ववेद में ब्रह्मचार्य आश्रम का सर्वप्रथम उपदेश है। यह आश्रम उपनयन संस्कार से प्रारम्भ होकर समावर्तन संस्कार तक होता है। सम्पूर्ण शिक्षा इसी आश्रम में होती थी। ब्रह्मचारी के व्रत -1 नित्य स्नान करना 2 शुद्ध होना 3 देव ऋषि पितृ का तर्पण करना 4 देवताओ की अर्चना करना 5. मांस मधु गन्ध द्रव्य माल्य रस का सेवन व् स्त्री संसर्ग का निषेध 6. जुआ नहीं खेलना 7. बहस नहीं करना 8. काम क्रोध लोभ नृत्य गीत वादन नहीं करना। ब्रह्मचार्य आश्रम से धर्म रूप पुरुषार्थ की सिद्धि होती है। 


2. गृहस्थ आश्रम :-सर्वोपरी आश्रम गृहस्थ आश्रम को माना गया है इस आश्रम में पांचमहा यज्ञ का निष्पादन होता है व् तीन ऋण से मुक्त हुआ जाता है। यह आश्रम सभी आश्रमों में ज्येष्ठ (बड़ा ) माना जाता है। गृहस्थी चार प्रकार के माने जाते है 1. कुसुलधान्य 2. कुम्भी धान्य 3. अश्वस्तन 4. कपोली भगश्रित 

गृहस्थ आश्रम में धर्म अर्थ काम "कामाख्या " पुरुषार्थ की सिद्धि होती है.


3. वानप्रस्थ आश्रम :-ये चार आश्रमों में से तीसरा आश्रम है इस आश्रम का अन्य नाम वैखानस भी बताया गया  है। इस आश्रम में धर्म आचरण ब्रह्म साक्षात कार के लिए वन में जाता है। इसमें व्यक्ति वल्कल वस्त्र मृग चर्म धारण करते है व् कंद मूल फल का सेवन करते है इस आश्रम में आरण्यक ग्रंथो का अध्ययन किया जाता है। वानप्रस्थ आश्रम में तपस्यात्मक श्रम विधा है वानप्रस्थ आश्रम का प्रमुख पुरुषार्थ धर्म मोक्ष है। 


4. सन्यास आश्रम :-सन्यास शब्द का शाब्दिक अर्थ है "त्याग ".जब मनुष्य भोग इच्छा के फलो का त्याग करता तब वह सन्यास आश्रम में प्रवेश करता है। इस आश्रम में उपनिषद ग्रंथो का अध्ययन किया जाता है। योग साधना व् निःस्पृहता इस आश्रम का श्रम है। सन्यास आश्रमों की अवधि 75 वर्ष से मृत्यु तक मनि जाती है। सन्यास आश्रम का प्रमुख पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति है।