कालिदास                                                 

कालिदास का जीवन परिचय :- देववाणी संस्कृत के अमर कवि कालिदास का जीवन चरित्र वैसे तो किसी परिचय का मोहताज नहीं नहीं है किन्तु फिर भी कुछ बाते  है जिनके बारे में हम सभी जानने के इच्छुक होते है और हम में से बहुत से लोग शायद इस विषय में जानते भी हो जिसके बारे में हम आगे जानने वाले है। 

कालिदास के बारे में जानने के लिए हमारे पास कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं है क्यों कि इन्होने आपने किसी भी ग्रन्थ में आपने जीवन से सम्बंधित कोई जानकारी नहीं लिखी है। अतः इनके विषय में जो भी जानकारी है वह अनुमानित ही है। न ही इनके जन्म स्थान का ठीक से कुछ पता है न ही जन्म तिथि या माता -पिता के नाम इत्यादि के बारे मे, कोई इन्हे मिथिला निवासी मानता है कोई बंगाल का तो कोई कश्मीर का किसी का कथन है  उज्जयिनी के निवासी थे। विद्वानों का मत है की ये राजा विक्रमादित्य के 9 रत्नो में शामिल थे। 

नव रत्न -

        धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंहशंकुवेतालभट्टघटखर्परकालिदास: ,

        ख्यातो वराहमिहिरो नृपते: सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नवविक्रमस्य। 

धन्वंतरि ,क्षपणक ,वेताल भट्ट , अमर सिहं ,शंकु , घट खर्पर , कालिदास , वाराह मिहिर ,वररुचि। 

कुछ मतों में यह उज्जयिनी के राजा भोज के सभा सद थे। कुछ किवदंतियो इनके बारे में प्रचलित है इनमे से एक यह है की ये पूर्व में मुर्ख थे ,इतने की जिस डाल पर बैठे थे उसी को काट रहे थे। एक राजा की पुत्री विद्योतम थी जिसने पप्रण लिया की जो भी व्यक्ति उसे शास्त्रार्थ में हराएगा में उसी  से विवाह करुँगी। कई विद्वानों ने इसके लिए प्रयास किया किन्तु विद्योत्तमा ने उन सभी विद्वानों को हरा दिया जिसे विद्वानों ने आपने अपमान समझा। तब योजना बनाते हुए वे विद्वान् कालिदास को विद्योतमा के समक्ष ले गए और कहा इनका आज मौन व्रत है इसलिए ये बोलेगे नहीं आपको जो भी पूछना है पूछे ये इसारे से ही उसके बारे में आपको बतायेगे। इस प्रकार शास्त्रार्थ प्रारम्भ हुआ और विद्योत्मा ने एक अंगुली दिखाई तो कालिदास ने दो अंगुली दिखाई इसी प्रकार विद्योत्मा ने पांच अंगुली दिखाई तो कालिदास ने मुठ्ठी दिखाई इसी प्रकार के प्रश्नो के साथ विद्योत्मा ने हार को स्वीकार कर लिया और विद्योत्मा ओर कालिदास का विवाह हुआ।

 विवाह के बाद एक दिन कालिदास के द्वारा अशुद्ध उच्चारण करने पर विद्योत्मा ने कालिदास को अपमानित किया ,अपमान से पीड़ित कालिदास प्राणो का त्याग करने के लिए सरस्वती नामक एक कुंड में छलांग लगायी किन्तु मृत्यु नहीं हुई ओर सरस्वती ने विदवता का वरदान दिया। विद्वता का वरदान पाकर कालिदास घर गए और दरवाजा खट - खटाया तब काली दस ने कहा "अनावृतकपाट दवारम देहि। "कालिदास के यह बोलने पर विद्योत्मा ने आवाज को पहचान कर कहा की "अस्ति कश्चित वाग्विशेष "कालिदास ने इन तीन शब्दों पर ही तीन काव्यग्रंथो की रचना की -1. अस्ति ="अस्त्युत्तरस्यां दिशि" के द्वारा "कुमारसम्भवम " 2. कश्चित् ="कश्चित् कांता विरहगुरुणा "के द्वारा "मेघदूत " 3. वाग = "वागर्थाविव सम्पृक्तौ " के द्वारा "रघुवंशम "की रचना की और इसी प्रकार  के ग्रंथो की रचना करके अपनी विद्वता को संसार के कोने कोने तक पहुंचाया। 

कालीदास के ग्रंथो से एसा प्रतीत होता है की ये जन्म से ब्राह्मण व शिव भक्त जान पड़ते है। मेघदूत व रघुवंश से प्रतीत होता है की इन्होने भारत का विस्तृत भ्रमण किया था इस कारण  से इन ग्रंथो में भौगोलिक वर्णन बड़ा ही सुन्दर व स्वाभाविक जान पड़ता है। राजसी वैभव व राज परिवार का पूर्ण ज्ञान बताता है की इनका जीवन सुख मय था। इन्होने रामायण ,महाभारत ,गीता ,वेद ,पुराण ,धर्म शास्त्र ,दर्शन ,ज्योतिष ,आयुर्वेद ,संगीत ,व्याकरण ,छंदशास्त्र ,और काव्य शास्त्रों आदि पर गम्भीर व विस्तृत अध्ययन किया था ऐसा इनके ग्रंथो के अध्ययन से ज्ञात होता है। 

                     कालिदास की रचनाएँ 

कालिदास की अनेक रचनाये कही जाती है किन्तु प्रामाणिक सिर्फ इन 7 को ही माना  जाता है 

                               नाटक 

1. मालविकाग्निमित्रं - यह पांच अंको का नाटक है जिसमे विदिशा के राजा अग्निमित्र व मालवदेश की                    राजकुमारी मालविका के  प्रेम व विवाह का वर्णन है। 

2. विक्रमोर्वशीयं - यह 5 अंको का नाटक है। इसमें राजा पुरुरवा तथा उर्वशी का प्रेम और विवाह की कथा है। 

3. अभिज्ञानशाकुंतलम - यह कालिदास का विश्व विख्यात नाटक है ,यह 7 अंको का नाटक है जिसमे दुष्यंत  और  शकुंतला के विवाह की कथा का वर्णन है। 

                         काव्य ग्रन्थ 

4. ऋतुसंहार - इसमें वर्ष भर आने वाली 6 ऋतुओ का बड़ा ही मनोहर वर्णन है। 

5. कुमारसम्भवम - यह 17 सर्गो का महा काव्य है ,इसमें शिव  -पार्वती के विवाह कुमार कार्तिकेय के जन्म तथा   सेनापति का पद ग्रहण कर तारकासुर के वध की कथा है। 

6. मेघदूत - यह खंड काव्य है।  इसमें एक वियोगी यक्ष का अपनी विरहिणी पत्नी के पास वर्षा ऋतु में बदल के          द्वारा सन्देश भेजने का बड़ा ही सुन्दर वर्णन है। इसे 2 भागो में बता गया है 1 पूर्वमेघ- जिसमे यक्ष ने मेघ से        अपनी अलका पुरी जाने का मार्ग विस्तार पूर्वक बताया है। 2. उतर मेघ - इसमें यक्ष के भवन और अपनी              पत्नी  का वर्णन ,पत्नी को कहने वाला सन्देश ,और मेघ का यक्षिणी को सन्देश कहने का वर्णन है। 

7. रघुवंश - यह 19 सर्गो का महा काव्य है। इसमें भगवान राम के पूर्वज महराजा दिलीप ,रघु आदि  के जन्म से लेकर बाद तक के सभी  राजाओ की कथा है।