समास  

समास शब्द पुल्लिंग शब्द है। समास शब्द की व्युत्पति =सम उपसर्ग पूर्वक अस धातु से घय प्रत्यय लगने पर समास शब्द बनता है। समास का अर्थ है - समसनं समास: अर्थात समास आसमान पदों का एक साथ आना। समास का प्रयोग जब पद अपने विभक्ति चिन्हो को छोड़ कर एक साथ आकर पद को संक्षेप में ला देते है जिसे  संक्षिप्तीकरण कहा जाता है। जैसे - चोर भयं यह चोरत और भयं दो पदों के मेल से बना है। हम इसे दोनों ही प्रकार से लिख सकते है क्योकि पद के संक्षिप्तीकरण से अर्थ में परिवर्तन नहीं होगा।  जो अर्थ चोरत भयम में विभक्ति का लोप होने पर चोरभयं बना है। 

यह पंचमी विभक्ति के  रूप में भय के योग में चोर पद में पञ्चमी विभक्ति का रूप कार्य करेगा। सयुंक्त पद होने पर हमे इसका ज्ञान नहीं होता है। सभी समास पदों में इस प्रकार का कार्य होता है। 

समास को समान्यतः दो पदों में विभक्त किया गया है -पूर्वपद व् उत्तरपद। जैसे पूर्व पद प्रधान होने पर सामन्यतः अव्ययी भाव समास होता है। वही उत्तरपद की प्रधानता होने पर तत्पुरुष समास होता है। समास पांच कहे गए है - 1.केवल समास ,2. अव्ययीभाव समास ,3. तत्पुरुष समास 4. बहुब्रीहि समास 5. द्वंद्व समास 

1. केवल समास - स च विशेष विर्निमुक्तो केवल समास। 

वह  समास जिसकी कोई विशेष संज्ञा नहीं होती वह केवल समास कहा गया। जैसे - भूतपूर्व: = पूर्वं भूतः यही इसका विग्रह रूप होगा कोई विशेष संज्ञा नहीं इसके उदाहरण भी कम ही देखने को मिलते है। 

2. अव्ययीभाव समास - प्रायेण पूर्व पदार्थ प्रधानोअव्ययी भाव समास: 

जब विभक्ति अर्थ में प्रायः पूर्वपद की प्रधानता जिस समास में होती है वह समास अव्ययीभाव समास है। जैसे - निर्मक्षिकं = निर उपसर्ग में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग करते हुए मक्षिकाणां  लिखेंगे। 

निर्मक्षिकं = मक्षिकाणां अभावः (मख्खियों का अभाव )

3. तत्पुरुष समास: - प्रायेण उत्तर पदार्थ प्रधानों तत्पुरुष समास: 

प्रायः उतर पद के अर्थ की प्रधनता होती है। तत्पुरुष समास में पूर्व पद में विभक्ति होती है , प्रायः उसी के नाम से ही  समास का भी नाम होता है। 

कृष्णश्रितः = कृष्णं श्रित: = द्वितीय तत्पुरुष समास 

मासपूर्वः = मसेन पूर्वः = तृतीया तत्पुरुष समास 

A. तत्पुरुष का एक भेद = कर्मधारय समास 

इसे विशेषण विशेष्य समास के नाम से जानते है। समान्यतः इसमें पूर्वपद में विशेषण व् उत्तर पद में विशेष्य हो तब कर्मधारय समास होता है। जैसे - कृष्णसर्पः = इसमें कृष्ण विशेषण और सर्प विशेष्य है। 

B. कर्मधारय का भेद - व्दिगु समास

 संख्यापूर्वी व्दिगु = जब समास का पूर्वपद संख्यावाची व उत्तर पद संज्ञावाचक होता है। यह समूह अर्थ में चलते है। पंचगवं = पञ्चानां गवां समाहारः (पांच गयो का समूह )

4. बहुव्रीहि समास - प्रायेण अन्य पदार्थ प्रधानों बहुव्रीहि समास

प्रायः न ही पूर्व पद की प्रधानता होती है इसमें पद का एक अन्य अर्थ निकलता है जिसके कारण अन्य पद की प्रधानता होती है। नीलकण्ठः = नीलः कण्ठः यस्य सः अर्थातः नीला है कण्ठ जिसका वह [शिव ]

5. व्दंव्द समास: - प्रायेण उभय पदार्थ प्रधानों व्दंव्द समास 

प्रायः दोनों पद के अर्थ की प्रधानता होती है जिसे च व्दारा अलग किया जाता है। रामलक्ष्मणो = रामश्च लक्ष्मणश्च अर्थात राम व लक्ष्मण।