विक्रमादित्य के नवरत्न 

विक्रमादित्य संस्कृत व् भारत की अन्य क्षेत्रिय भाषाओं में एक लोक प्रिय व्यक्ति है जिनके इर्द - गिर्द बहुत सारी    कहानियों का जन्म होता है | उनमे से सिंहासन द्वात्रिंशिका [सिंहासन बत्तीसी ] बेताल पंचविंशति [ बेताल पचीसी ] आदि है | जिनका हर भाषा में रूपांतरण मिलता है .विक्रमादित्य शब्द विक्रम + आदित्य से मिलकर बना है जिसका अर्थ है सूर्य के समान पराक्रमी। विक्रमादित्य व्यक्ति विशेष की का नाम न होकर राजा के द्वारा धारण की गयी एक उपाधि कही जा सकती है। तो ये  विक्रमादित्य कोन है जिनकी हम बात कर रहे है ,यह यह बताना मुश्किल है। क्योकि सम्पूर्ण भारत वर्ष में विक्रमादित्य की उपाधि 14 राजाओं ने धारण की है। तो इन सम्राट के बारे में हम यह कहा सकते है की ये सम्राट विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे। इनका काल कला व् साहित्य का स्वर्ण काल माना जाता है। 

भारत के इतिहास में कहा गया है की विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्न उच्च कोटि के कवि ,विद्वान् ,ज्योतिष ,गणितज्ञ थे। जिनकी योग्यता भारत में ही नहीं विश्व में भी लोहा मानवती थी। 

धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंहशंकुवेतालभट्टघटखर्परकालिदास :

ख्यातो वराहमिहिरो नृपते : सभायां रत्नानि वै वररुचिवविक्रमस्य। 

धन्वंतरि ,क्षपणक ,वेतालभट्ट ,घटखर्पर ,कालिदास ,वराहमिहिर ,वररुचि ,अमरसिंह ,शंकु विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में गिने जाते है। ै 

1. धन्वंतरि - साहित्य में दैविक ,वैदिक ,व ऐतिहासिक धन्वन्तरियो का उल्लेख मिलता है दैविक धन्वंतरि देवताओं के रोगों का निवारण करते थे। ऐसा अनेक कथा से ज्ञात होता है शायद आयुर्वेद के प्रथम वैध धन्वंतरि को माना जाता है। सुश्रुत जो की शल्य चिकित्सा के जान कार थे उनके शिक्षक भी धन्वंतरि को बताया जाता है। किन्तु यह बताये धन्वंतरि व शिक्षक धन्वंतरि दो अलग व्यक्ति है। ऐसा शायद इसलिए की प्राचीन काल में वैध को धन्वंतरि के नाम से सम्बोधित किया जाता है। शल्य चिकित्सा में निपूर्ण व्यक्ति ही धन्वंतरि पद को धारण करता था। 

विक्रमादित्य के धन्वंतरि भी सेना में नियुक्त थे। उन्होंने रोग निदान ,विद्ध्या  प्रकाश चिकित्सा ,वैध चिंतामणि धन्वंतरि निघण्टु ,वैधक भास्करोदक ,चिकित्सा सार संग्रह आदि ग्रन्थ लिखे है। 

2. क्षपणक - हिन्दु लोग जैन साधुओं को क्षपणक कहते है। दिगम्बर जैन के साधु 'नग्न क्षपणक 'कहते है। विशाखदत्त लिखित मुद्राराक्षस में (संस्कृत नाटक )क्षपणक वेश में गुप्तचर का उल्लेख मिलता है। 

3. शंकु -शंकु की कुछ विद्वान् मन्त्र वादिन ,कुछ विद्वान् रसाचार्य और कुछ ज्योतिषाचार्य मानते है। वास्तव में शंकु क्या है यह बताना मुश्किल है "ज्योतिविद्भरण "के एक श्लोक में इन्हे कवि बताया है जिन्होंने शबर भाष्य ग्रन्थ की रचना की है। किवदंतियो में इन्हे स्त्री रूप में बताया है जो भी ही विक्रमादित्य के दरबार में होने से इनकी विद्वता का परिचय अवश्य है। 

4. वेताल भट्ट - विक्रमादित्य के नवरत्नों में वेताल भट्ट नाम आश्चर्य में डालता है। क्योकि यह भूत - प्रेत का पंडित होने का बौद्ध करता है। प्राचीनकाल में भट्ट उपाधि पंडितो की होती थी और वेताल से तात्पर्य भूत - प्रेत से है। इनका वास्तविक नाम अन्य कुछ हो किन्तु ऐसा उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। विक्रमादित्य व वेताल की अनेक कथाएं मिलती है और हो सकता है विक्रमादित्य के साहसिक कार्यो के कारण इन्होने "वेताल पच्चीसी "के रचना कार रहे हो या भूत - प्रेत की साधना में प्रवीण हो। 

5. घट खर्पर - इनके विषय में भी कोई विशेष जानकारी इनके नाम के विषय में नहीं है की ये नाम कैसे पड़ा इसका उल्लेख नहीं मिलता है। एक किवदंती के अनुसार कालिदास के साथ रहने के कारण ये कवि बने क्योकि इनकी प्रतिज्ञा थी की जो भी व्यक्ति मुझे "यमक "रचना में पराजित करेगा में उसके यहां घड़े के टुकड़े से पानी भरुँगा। इन्होने 2 लघु काव्य लिखे -

A . घट खर्पर - यह 22 पद्यों का काव्य है। यह सयोग श्रृंगार से ओतप्रोत दूत काव्य है। इस पर अभिनवगुप्त ,भारतमल्लिका ,शंकर गोवर्धन ,कमलाकर ,वैधनाथ ने टिका ग्रन्थ लिखे है। 

B , यह रचना नीतिसार मणि जाती है जिसमे 21 श्लोको में निति का विवेचन है। 

6. वररुचि - इन्हे विक्रमादित्य की पुत्री का गुरु मन जाता है। पत्र कौमुदी नामक काव्य की रचना की जाती है। इस काव्य की रचना विक्रमादित्य के आदेश से की है। "विद्या सुंदरम काव्यम "नामक रचना भी इन्होने विक्रमादित्य के आदेश से की थी। कथासरित्सागर के अनुसार वररुचि का अन्य नाम कात्यायन था। काव्य मीमांसा के अनुसार वररुचि ने पाटलिपुत्र में शास्त्रकार परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इनका जन्म कौशाम्बी ब्राह्मण के यह हुआ था। ये तीक्ष्ण बुद्धि के धनी थे। 

7. अमरसिंह - राजशेखर की काव्य मीमांसा के अनुसार अमरसिंह ने उज्जयिनी में काव्य की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।  संस्कृत का सर्वप्रथम कोष "नामलिंगानुशासन "है जिसे "अमरकोष "भी कहा जाता है अमरसिंह के द्वारा लिखे जाने के कारण अमरकोष पर 50 टिकाए लिखीगई है।  कोष में बौद्ध (महायान सम्प्रदाय )के शब्द मिलते है। 

8. वराहमिहिर - पंडित सूर्य नारायण व्यास के अनुसार विक्रम की सभा के वराहमिहिर ज्योतिष के ज्ञाता थे। 

9. कालिदास - कालिदास का समय आधावधि विद्वान्ों के विवाद विषय बना है दीर्घकाल के विमर्श के पश्चात् इस सम्बन्ध में दो मत शेष है - 1. प्रथम शताब्दी ईस्वी पूर्व तथा 2. द्वितीय मत में चतुर्थ शतब्दी ईस्वी सन का। प्रथम सदी के पक्ष में विद्वानों का बहुमत है।