मुनि त्रय [भाग -1 ]{ पाणिनि }
परिचय :- संस्कृत साहित्य में संस्कृत को अस्तित्व में लाने का श्रय मुनि त्रयको दिया जाता है। मुनि त्रय में पाणिनि ,कात्यायन ,पतञ्जलि को रखा गया है। संस्कृत में इन मुनियो के योगदान के कारण ही संस्कृत को आज पड़ना ओर समझना हमारे लिए संभव हो पाया है। पाणिनि के लिए तो कहा भी जाता है की इन्होने भगवन शिव के डमरू से निकली ध्वनि से ही "महेश्वर सूत्र "की रचना की है जिनसे हम वर्ण माला के नाम से भी जानते है और इसी वर्ण माला पर ही सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरण का निर्माण हुआ है। जो कि संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओ का के निर्माण में आधार रही है।
आज हम उन्ही मुनि त्रय में से पाणिनि के बारे में जानने का प्रयत्न करेंगे -
1. पाणिनि :-
जन्म =500 ई.पूर्व जन्म स्थान = पाकिस्तान के लाहौर प्रान्त के शालातुर गांव
वर्तमान = आहुर प्रान्त
माता = दाक्षी पिता = पाणि / शलङ्क
गुरु = उपवर्ष विद्यालय = तक्षशीला
आराध्य = शिव सहपाठी = वररुचि (कात्यायन )
मृत्यु = सिंह के द्वारा मृत्युतिथौ = त्रयोदशी
पाणिनि के उपनाम (अन्य नाम )= शालंकि ,दाक्षिपुत्र ,आहिक
कृतियाँ = धातु पाठ, गणपाठ , शब्दानुशासन ,लिंगानुशासन , पतालविजयम ,जाम्वंतिविजयम ,पाणिनि शिक्षा
प्रसिद्ध कृति = अष्टाध्यायी
अष्टाध्यायी में -: अध्याय =8 ,पाद = 4 ,कुलपाद =32 , सूत्र =3995
अष्टाध्यायी के अध्याय -:
1. प्रथम अध्याय = संज्ञा प्रकरण /परिभाषा प्रकरण
2. द्वितीय अध्याय = समास प्रकरण /विभक्ति प्रकरण
3. तृतीय अध्याय = तद्धित प्रकरण
4. चतुर्थी प्रकरण = कृदन्त प्रकरण
5. पञ्चम अध्याय = स्त्री प्रकरण
6. षष्ठ अध्याय = सन्धि प्रकरण
7. सप्तम अध्याय = आगम आदेश प्रकरण
8. अष्टम अध्याय = स्वर प्रक्रिया
1. अष्टाध्यायी का प्रथम अध्याय = संज्ञा प्रकरण /परिभाषा प्रकरण
2. अष्टाध्यायी अंतिम अध्याय = स्वरादि प्रकरण
3. अष्टाध्यायी का प्रथम सूत्र = वृधिरादैच
4. अष्टाध्यायी का अंतिम सूत्र = अ ,अः
; पाणिनि सूत्र के लक्षण :-
1. अल्पाक्षर
2. असंदिग्ध
3. सारवत
4. विश्वतोमुखम
5. अस्तोभनम
6. अनवधम
: पाणिनि सूत्र के प्रकार :-
1. संज्ञा सूत्र
2. परिभाषा सूत्र
3. विधि सूत्र
4. अतिदेशो सूत्र
5. अधिकार सूत्र
6. नियम सूत्र
0 टिप्पणियाँ